– मरू गंगा की गोद से नव आगाज
– सैंकड़ों बच्चों ने ली शपथ, हम बचाएंगे हमारी गंगा
बाड़मेर.
मीलों फैली दरिया, आज दयनीय स्थिति में है। जानते सब है कि हम कुदरत के नायाब तोहफे को खो रहे है, लेकिन खामोशी से खत्म होती मरू गंगा को देख रहे है। इस बीच रविवार को न सिर्फ स्थानीय लोगों के सामने बल्कि दुनियां के सामने जसोल व तिलवाड़ा के सैकड़ों स्कूली बच्चों ने वो नजीर पेश की, जिसे आने वाले दिनों में “जल युद्ध” के आगाज के साथ देखा जाएगा। रविवार को अवकाश का दिन था। थार रेगिस्तान में न मौसम बदला और न बारिश हुई। फिर भी तिलवाड़ा स्थित लूणी नदी में, हलचल थी और बहाव भी। हलचल थी नन्हें पांवों की और बहाव था उन सैकड़ों नन्हें बच्चों के जज्बे का। दरअसल ये सैकड़ों बच्चे अपनी मरू गंगा को बचाने के लिए लूणी की गोद में शपथ ले रहे थे कि मां मरू गंगा को बचाना है। बस, फिर क्या था, इनके इरादों को जहां पहले पंख दिए श्री राणी भटियाणी मंदिर संस्थान, जसोल और बाड़मेर इंटेक चैप्टर के संयोजक रावल किशन सिंह जसोल ने और बाद में आस-पास के गांवों से जमा हुए सैकड़ों मौजीज लोगों ने। रविवार सवेरे तिलवाड़ा लूणी नदी में छात्र-छात्राओं को आने का क्रम शुरू हुआ, तो आस-पास के दर्जनों गांवों में ये खबर पहुंची। देखते ही देखते सैकड़ों ग्रामीण नदी में जमा होने लगे। सूखी लूणी नदी की सनातन परम्परा से पंडित मनोहरलाल अवस्थी ने पूजा अर्चना के साथ जल आरती की। नदी में पूजा में वहां जमा सभी लोगों ने भाग लिया। इंटेक के यशोवर्धन शर्मा ने जल-जंगल और मरू गंगा बचाने के इस पावन कार्य के लिए बच्चों को शुभकामनाएं दी।
यूं लगा कि सब संग-संग
आगाज व जज्बा भले ही नन्हें पांवों का था लेकिन दूर तक फैली मरू दरिया में जब मानव श्रृंखला बनी तो नजारा देखने लायक था। नन्हें हाथों में झंडियां थी जिस पर लिखा था “जय मरू गंगा” और तख्तियां जिन पर लिखा था कि “कुदरत से करे प्यार”, “प्रकृति है तो हम है” और “हमारी लूणी, हमारा जीवन”।
गांवों की कच्ची पगडंडियों पर दिखा पक्का इरादा
तिलवाड़ा डाक बंगले से नदी तक के कच्चे रास्ते पर, जब बच्चों के कदम बढ़े तो समझ आ रहा था कि लूणी कल सुरक्षित हाथों में है। उनके कदमों से उठते रेत के गुब्बार में नई नस्लों की सोच और उसकी गूंज सुनाई दे रही थी। बच्चों की ये रैली उन खामोश आवाजों को गूंज में तब्दील करने का सबब भी बनेगी।
कल की आस्था, आज प्रदूषित
पाली और बालोतरा की रंगाई-छपाई इकाईयों से निकलने वाले रसायनिक पानी और कम वर्षा के चलते लूणी आज नदी की जगह रसायनिक पानी का नाला बन कर रह गई है। यकीनन इसे बचाने की दिशा में ये कदम कारगर साबित होगा।
…तो बूजुर्गों ने दिया ये पैगाम
श्री राणी भटियाणी मंदिर संस्थान अध्यक्ष व इंटेक चैप्टर जिला संयोजक रावल किशन सिंह जसोल ने कहा कि लूणी नदी के बेसिन पर स्थित रंगाई-छपाई फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित पानी की वजह से यह बर्बाद हो गई है। नदियों के किनारे हमारी संस्कृतियों का जन्म हुआ है लेकिन आज इसी लूणी के किनारे और आस-पास के सैकड़ों गांव जहां पीने के शुद्ध पानी को तरस रहे है, वहीं हजारों बीघा जमीन बंजर हो चुकी है। ऐसे में स्कूली बच्चों का यह मानव श्रृंखला बनाकर मरू गंगा को बचाने का संदेश यकीनन आने वाले दिनों में अच्छा परिणाम लाएगी। उन्होंने कहा कि पहले लूणी नदी बालोतरा के लिए खुशहाली की प्रतीक थी। लेकिन पश्चिमी राजस्थान की जीवनदायिनी मरू गंगा यानी लूणी नदी आज संकट में अपने वजूद को बचाने की अंतिम लड़ाई लड़ रही है।
कोरोना महामारी को लेकर भी बच्चें संजीदा
जसोल व तिलवाड़ा के स्कूली बच्चों ने मानव श्रृंखला बनाकर जागरुकता का संदेश देते हुए मरू गंगा को बचाने की शपथ ली। स्कूली बच्चों ने एक दूजे का हाथ नहीं थामते हुए दो गज की दूरी के फांसले के साथ मुंह पर मास्क लगाकर नदी बचाने व कोरोना के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया।
संतो का संगम स्थल मरू गंगा की गोद में 700 साल पहले संतों के समागम ने इसकी पवित्रता को समझा था। संतों का वो संगम स्थल, आज तिलवाड़ा पशु मेले के तौर पर दुनियां में जाना जाता है। मालाणी नस्ल के घोड़ों की खरीद फरोख्त के लिए प्रसिद्ध श्री मल्लीनाथ पशु मेला तिलवाड़ा में लगता है। जहां हजारों की संख्या में पशु पहुंचते हैं। रावल मल्लीनाथ का समाज विज्ञान और प्रकृति के प्रति उनकी सोच ने आज की प्रदूषित लूणी नदी में तब पवित्रता को समझा था। दुख की बात है कि आज की सोच ने इसके वजूद को लगभग खतरे में डाल दिया है।
ये रहे मौजूद
मरू गंगा बचाओं कार्यक्रम में इंटेक चैप्टर, बाड़मेर के पूर्व संयोजक यशोवर्धन शर्मा, तिलवाड़ा सरपंच सोहन सिंह, सिणली सरपंच भीम सिंह, शिक्षक कुन्दनसिंह तिलवाड़ा, दलपतसिंह रामसर, बलवन्तसिंह तिलवाड़ा, घनश्यामसिंह शेखावत, मोहन भाई पंजाबी, जीतूसिंह डंडाली, पुंजराजसिंह वरिया, फकरु खाँ सहित इंटेक चैप्टर पदाधिकारी व ग्रामीण मौजूद रहे।